
जीवन में जल की उपयोगिता उतनी ही है जितनी जीने के लिए वायु की। पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां चर-अचर जीवों को जीवित रहने के लिये पृथ्वी,आकाश,जल, वायु एवम् अग्नि जैसे तत्व विद्यमान है। परन्तु अन्धाधुंध भौतिक विकास की लालसा ने पृथ्वी पर से प्राण वायु देने वाले वनों के आकार को बहुत सीमित कर दिया है जिससे तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि और जलवायु में अप्राकृतिक परिवर्तन की भयानक घटनाएं घटित हो रहीं है। पर्वतो पर बिखरे हिमनद सिकुड़ रहै हैं और नदियां सूखकर अपना अस्तित्व खो रहीं है। असामान्य मौसम के कारण पृथ्वी पर जल संकट के वैश्विक त्रासदी के रूप में उभर कर सामने आया है। इस त्रासद पर्यावरणीय संकट को देखते हुए वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि तीसरा विश्व युद्ध जल के लिये होगा।संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि जल हर प्राणी के जीवन का आधार है।
जल संकट ग्रीष्म ऋतु में हिमाचल में घोर संकट का रूप धारण कर लेता है। मनुष्य तो मनुष्य जानवर भी जल के घोर संकट से दो चार होते हैं। बेसहारा पशु की त्रासदी यह रहती है कि सर्दियों में हिमपात और सर्दी से इनकी असामयिक मौत हो जाती है और गर्मियों में भीषण गर्मी से पनपे जल संकट से बूंद बूंद के लिये तरसते देखा जा सकता है। बहुधा मूक व निरीह प्राणी सूखे नलों से अपने सूखे कण़्ठ को तर करने के लिये प्रयास करते देखा जा सकता है।(डाॅक्टर जगदीश शर्मा द्वारा खींचा संलग्न चित्र इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है)मानव की नृशंस विकास की प्रवृति के कारण निरीह जानवर भी प्रकृति द्वारा दी गई सजा को भुगतने के लिये अभिशप्त है।अतः हर क्षण,हर स्थान हर पल जल की बूंद-बूंद की बचत करे।क्योंकि जल की हर बूंद अनमोल है।