प्रचण्ड समय(शिमला) पांगणा मे लाहौल मेले का समापन

हिमाचल प्रदेश की ऐतिहासिक नगरी पांगणा-सुुकेत मे एक महीने तक आयोजित लाहौला पर्व का भुट्ठा सौह मेले के साथ समापन हो गया।इस मेले मे पांगणा-चुराग,सुईं-कुफरीधार, कलाशन,मशोग,बही-सरही,जाच्छ काण्ढा सहित अनेक पंचायत वासियो ने भाग लिया।
– आल-पाल लुड्डी पाईए,नाचया हो दक्षा री धीए।
हरा-भरा साओरडे,मेरी लाहौल चली साओरडे।
लाहौल का मतलब है शिव -पार्वती का विवाह और फिर दोनो का नदी मे विसर्जन। लाहौल एक ऐसा पर्व है जिसे छोटी-छोटी लड़कियो के साथ छोटे-छोटे लड़के भी मनाते है।चैत्र मास की संक्राति को सुकेत अधिष्ठात्रि राजराजेश्वरी महामाया पांगणा के मंदिर मे वास्तु के रूप मे एक सुपारी को शुभ मुहूर्त मे स्थापित किया जाता है।फिर इसे फूल अर्पित किए जाते है ।निरंतर एक माह तक लड़किया सूर्योदय से पूर्व घर-घर जाकर लाहौल गीत गाते हुए फूल इकट्ठे कर लहौला को अर्पित करती है।लाहौल विसर्जन  से एक सप्ताह पूर्व मिट्टी की शिव पार्वती की मूर्तिया बनाकर उन्हे सुखाकर विभिन्न रंगो से सजाती है।लाहौल विसर्जन से एक दिन पूर्व धार्मिक  रीति-रिवाज से शिव पार्वती का विवाह करती है।इसी दिन चुराग पंचायत के अंतर्गत फरास गांव मे स्थित देव थला जी की रथ यात्रा लाहौल मेले मे शामिल होने के लिए पांगणा पहुंचती है।अगले दिन सुईं-कुफरीधार पंचायत की महामाया बलेश्वरी की रथ यात्रा पांगणा पहुंचती है।दोपहर बाद शिव-पार्वती की मूर्तियो को सजाकर एक टोकरे मे रख फूलो से ढक कर व सिर पर उठाकर शिकारीदेवी की चरणगंगा के तट पर स्थित बाग गांव के पार्वती कुंड के पास पहुंचाते है।इसके बाद देव थला जी की रथ यात्रा लाहौल मेला स्थल भुट्ठा सौह पहुँचती है।दोपहर बाद लगभग दो बजे महामाया पांगणा और महामाया छण्डयारा की रथयात्रा जब पार्वती कुँड के ऊपर पहुंचती है तो “होफरा”वाद्यधुन के बजते ही नाथ संप्रदाय का व्यक्ति शिव पार्वती के फूलो से ढके टोकरे को सिर पर उठाकर कुँड मे छलांग लगाकर इन्हे विसर्जित कर देता है।ऐसे मे लड़कियो और महिलाओ के छलकते आंसुओ को रोक पाना मुश्किल हो जाता है।लाहौल विसर्जन के बाद देव रथ यात्रा मेला स्थल भुट्ठा सौह पहुंचती है।जहां लाहौल के सम्मान मे सायंकाल सात-आठ बजे तक लाहौल मेले का आयोजन होता है।लाहौल पर्तीव की खुशी मे देव रथ “मेड़”,रथ नृत्य सभी के आकर्षण का केन्द्र रहता है। श्रद्धालु तीनो देव रथो को अपनी मन्नौतिया अर्पित कर आशीर्वाद प्राप्त करते है।देवरथो के अपनी-अपनी कोठी को लौटने के साथ लाहौल मेले का भी समापन हो गया।सुकेत संस्कृति साहित्य और जन-कल्याण मंच पांगणा-सुुकेत के अध्यक्ष डाॅक्टर हिमेंद्र बाली “हिम”संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा,हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के एग्रो इकोनोमिक्स विभाग के सेवानिवृत्त कर्मी खेमराज शर्मा,सेवानिवृत्त सीनियर फार्मासिस्ट जीवानंद शर्मा,सेवानिवृत्त अधीक्षक नरेन्द्र शर्मा,समाज सेवी रविन्द्र गुप्ता और संस्कृति मर्मज्ञ डाॅक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि लाहौला पर्व मे अब छोटी-छोटी लडकियो की निरंतर एक माह तक भागेदारी का तो लोप हो गया है साथ ही लाहौला के प्रति श्रद्धा भावना की कमी से ऐतिहासिक नगरी पांगणा-सुुकेत की संस्कृति भी नष्ट होती जा रही है।हम समस्त पांगणा-सुकेत-मंडी और हिमाचल वासियो को समय के साथ लुप्त होती समृद्ध संस्कृति का उद्धार करना चाहिए।

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